नागपंचमी चे औचित्य साधून

नागपंचमी चे निमित्त साधून खऱ्या नागपंचमीची माहिती सांगण्याचा प्रयत्न .

नाग वंश इतिहास :
दूसरी शताब्दी के मध्य से लेकर चौथी शताब्दी के मध्य तक जिसे इतिहासकारों ने “डार्क एज ” कहा है, वह वस्तुतः नाग साम्राज्य का इतिहास है!

नागवंशीय नागराजा राजवंश घरानों का धम्म प्रतीक चिह्न (टोटेम) है नाग, शेषनाग,पञ्चमुखी नाग, सप्तमुखी नाग, भुजंग, डैगन होने के कारण नागवंशी कहलाए। साक्य & नागवंशी राजघराणों का साम्राज्य हिमालय के उस पार से लेकर बांग्लादेश-पाकिस्तान अफगाणिस्तान तक फैला था ! उस दौरान उन्होंने भारत के बाहर भी कई स्थानों पर अपनी विजय पताकाएं फहराई थीं।

विशेष तौर पर कैलाश पर्वत से सटे हुए इलाकों जैसा जम्मू-कश्मीर से असम, मणिपुर, नागालैंड तक इनका प्रभुत्व था । तिबेट तक था , तिब्बती भी अपनी भाषा को ‘नागभाषा’ कहते हैं।

नाग वंश में एक से बढ़कर एक राजा हुए –

1.मूलचिंद नागराजा छठी शताब्दी ईसा पूर्व

  1. अनंतनाग नागराजा ( 110 ई.पू. ) अनंतनाग नागराजा को ही शेषनाग उपाधि से जाना जाता है !
    a) भोगिन नागराजा
    b) चंद्राशु नागराजा
    C) धम्मवर्म्मन नागराजा
    d) वंगर नागराजा
    3.वासुकी नागराजा,
  2. तक्षक नागराजा,
  3. करकोटक(कर्कोटक) नागराजा
  4. ऐरावत नागराजा,
  5. मगध साम्राज्य शिशुनाग
  6. वीरसेन नाग,
  7. नरदेव नाग
  8. भव नाग,
  9. गणपति नाग …
    अनंतनाग,वासुकी,तक्षक और पिंगल वंश ने अपने वंश कुल चलाए !

बुद्ध की अरिय समण धम्म संस्कृती अनुसार
जो पर्याप्त धम्म ऐतिहासिक साक्ष्य
उपलब्ध हैं उसके अनुसार :-

1) मुचलिंद नागवंशी नागराजा छठी शताब्दी ईसा पूर्व

2 ) शेषनाग का पूरा नाम शेषदात नाग था। उनके पूरे नाम की जानकारी हमें ब्रिटिश म्यूजियम में रखे सिक्कों से मिलती है।

शेषनाग ने विदिशा को राजधानी बनाकर 110 ई.पू. में शेषनाग वंश की नींव डाली थी।

शेषनाग की मृत्यु 20 सालों तक शासन करने के बाद 90 ई. पू. में हुई। उसके बाद उनके पुत्र भोगिन राजा हुए, जिनका शासन – काल 90 ई. पू. से 80 ई. पू. तक था।

फिर चंद्राशु ( 80 ई. पू. – 50 ई. पू. ) , तब धम्मवर्म्मन ( 50 ई. पू. – 40 ई. पू. ) और आखिर में वंगर ( 40 ई. पू. – 31ई. पू. ) ने शेषनाग वंश की बागडोर संभाली।

शेषनाग की चौथी पीढ़ी में वंगर थे। इस प्रकार शेषनाग वंश के कुल मिलाकर पाँच राजाओं ने कुल 80 सालों तक शासन किए।

इन्हीं पाँच नाग राजाओं को पंचमुखी नाग के रूप में बतौर बुद्ध के रक्षक कन्हेरी की गुफाओं में दिखाया गया है।

जिन बुद्ध की प्रतिमाओं के रक्षक सातमुखी नाग हैं, वे पंचमुखी नाग वाली प्रतिमाओं से कोई 350 साल बाद की हैं।

नाग वंशावलियों में ‘शेषनाग’ को नागों का प्रथम पराक्रमी राजा माना जाता है। शेषनाग को ही ‘अनंत’ नाम से भी जाना जाता है।

नागवंशी नागराजा अनंतनाग नागराजा का साम्राज्य विस्तार जम्मू-काश्मीर में फैला था उसने अपने नाम से ही अनंतनाग शहर बसा कर उस को भी अपनी राजधानी का दर्ज़ा दिया था !

कश्मीर का ‘अनंतनाग’ इनका गढ़ माना जाता था। कांगड़ा, कुल्लू व कश्मीर सहित अन्य पहाड़ी इलाकों में नागों के वंशज आज वर्तमान समय में भी मौजूद है। उसमे से कुछ नागकुल के लोग झारखंड और छत्तीसगढ़ में आकर बस गए !

इसवी सन पूर्व 6 वी शताब्दी मगध साम्राज्य स्थापित हूआ, उसका संस्थापक शिशुनाग यह
नागवंशीय नागराजा था !

इन सभी नागवंशीय नागराजा जो बुद्ध धम्म के महउपासक , संरक्षक थे आज भी इस बात का भारत का गौरवशाली धम्म इतिहास की साक्ष्य देते है !

शेषनाग को ही ‘अनंत’ नाम से भी जाना जाता है। इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए फिर तक्षक और पिंगला नागवंशी राज घराणों ने अपने अपने नाम से कुल चलाए !

3) वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य करता था !
4) नागवंशी नागराजा तक्षक, जिसने बुद्ध के धम्म का विश्वविद्यालय तक्षकशिला (तक्षशिला पाकिस्थान) का निर्माण किया ! तक्षशिला शहर बसाकर अपने नाम से ही ‘तक्षक’ कुल चलाया था।

उनके बाद ही कर्कोटक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अनत, अहि, मनिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना इत्यादी नाम से नागों के वंश हुआ करते थे। भारत के भिन्न-भिन्न इलाकों में इनका राज्य था। जो नागवंशीय राजकुल कश्मीर में निवास करते थे। बाद में ये सभी नागकुल के लोग झारखंड और छत्तीसगढ़ में आकर बस गए !

5) नागवंशी नागराजा करकोटक (कर्कोटक)
6) नागवंशी ऐरावत नागराजा का रावी नदी के आसपास में उनका शासन रहा !

  1. मगध साम्राज्य शिशुनाग
  2. वीरसेन नाग,
  3. नरदेव/देव नाग
  4. भव नाग,
    11.बृहस्पति नाग,

नागवंशीय प्राचीन काल के वंशज राजकुल के
नौ नाग राजाओं के जो पुराने सिक्के मिले हैं,
उन पर ‘बृहस्पति नाग’, ‘देवनाग’, ‘गणपति नाग’ इत्यादि नाग नाम लिखे प्राप्त हुए हैं । इन
नागवंशीय का शासनकाल नागगण विक्रम संवत 150 और 250 के बीच राज्य करते थे।
मथुरा और भरतपुर से लेकर ग्वालियर और उज्जैन तक का भू-भाग नागवंशियों के अधिकार में था।

551 ई. के आस-पास वासुदेव नाग यहाँ का शासक था। इस वंश का उदीयमान शासक हुआ सातवीं शताब्दी में नरदेव हुआ। यह नागवंशी शासक मूलतः बुद्ध के उपासक थे !

नागा आदिवासी’ का संबंध भी नागवंशी से ही माना गया है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी नल और नाग वंश तथा वर्धा के फणि-नाग वंशियों का उल्लेख मिलता है। मध्यप्रदेश के विदिशा पर शासन करने वाले नाग वंशीय राजाओं में शेष, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि आदि का उल्लेख मिलता है।

बुद्ध के भूमि पर अनेक नागवंशियों राजोनों ने राज किया है, इसी कारण भारत के कई नगर, शहर और ग्राम ‘नाग’ शब्द पर आधारित हैं। महाराष्ट्र का नागपुर शहर सर्वप्रथम नागवंशियों ने ही बसाया था। वहां की नदी का नाम नाग नदी भी नागवंशियों के कारण ही पड़ा। नागपुर के पास ही प्राचीन नागरधन नामक एक महत्वपूर्ण प्रागैतिहासिक नगर है। नागवंशी के वंशज को मनुवादी प्रतिक्रान्ति में महार जाति में ढकेल दिया गया ! महाराट्ठ भाषिक अपभ्रंश हो कर महाराष्ट्र हो गया। महार जाति भी नागवंशियों के वंशज है ! प्राचीन समय से ही यह सभी नागवंशीय बुद्ध के उपासक, धम्म संस्कृति के संरक्षक और धम्म प्रचारक थे !

आज भी अनेक धम्म ऐतिहासिक सहित्यों में, प्राचीन दस्तऐवजो में, गुफाओ में, शिलालेखो मे, धातु- लकड़ी – पाषाणों में, और पुरातत्त्वो के उत्खननं में, खोजो में बुद्धिस्ट नाग संस्कृति के महान इतिहास के सबूत संदर्भ के तौर पर मिल रहे है l इस तरह से २५०० सालो से बुद्धिस्ट नागवंशीय लोगो की आइडेंटिफिकेशन (Identification) ऐतिहासिक धम्म साक्ष्य बुद्धमय नाग संस्कृति को उजागर करता है !

हम सभी बुद्ध के उपासक – उपासिका
अरिय गृहस्थ सावक‌ संघ अपनी धम्म धरोहर धम्म इतिहास को बड़े ही कुशलतापूर्वक हिफाजत (Protected) की, अंत तक जीवित रखा, चाहे नागवंशीय बुद्धिस्ट राजों का सुवर्णकाल (Golden-age) हो या गुलामीकाल (Slavery-age) हो, नागराजा मुचलिंद , अनंत नाग, तक्षक नाग,शिशुनाग
इस सुवर्णकाल से लेकर पेशवेकालीन गुलामीकाल के सिद्धनाक, हरनाक और भीमाकोरे गाव के तक का संघर्ष, इतिहास से सर्वश्रुत है !

विशेष धम्म संदेश :–

ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय साक्योनों अपना साक्यकुल चलाया जो साक्यवंश कहलाया ! कोलियों का कोलियवंश (आज के कोली) नागवंशीयों ने नागवंशी ,मौर्यवंशीयों ने मौर्यवंश,चकमावंशीयों ने चकमा वंश और सातवाहन वंश , नेपोलियन वंश भी तो है ?

न जाने कितने वंश होगे ?

सभी उपोरक्त धम्मवंश सभी वंशज कों मन में यह गाठ बांधनी चाहिए कि उनके सभी पूर्वज को वोह अपने आप को गौरवशाली वंशज मानते है ! वोह सभी अपनी पूर्व जाती,वर्ण,वंश को छोड़ कर बुद्ध ,धम्म ,संघ तीसरण‌ गए है ! धम्म में खुद परिपक्वता प्राप्त थे और अपनी प्रजा को धम्म में प्रतिष्ठित करने के लिए बुद्ध के देसना का परिशुद्ध रूप से ही प्रचार प्रसार किया था , धम्म को संरक्षित किया था !

आज के समय में चक्कवत्ती सम्राट धम्मअसोक के बुद्ध सासन जैसे ही “धम्ममहामत्त” (धम्ममहापात्र) उपाधि प्राप्त धम्म सेवक / सेविका धम्म प्रचारक की आवश्यकता है ! पहले सम्राट असोक के बुद्ध अनुसाशन में धम्म के प्रसार प्रचार करने के लिए धम्म में प्रशिक्षित धम्म प्रचारक हुआ करते थे ! प्रचारक गृहस्थ सावक संघ से ही होते थे ! उनको धम्ममहामत्त यह धम्म उपाधि से नवाजा जाता था ! तथा ऐसे विशेष स्त्री अध्यक्ष इत्थि अज्झख महामत्त कहा जाता था ! वोह सभी धम्म सेवा करते थे जो बुद्ध की धम्म देशना को सभी बहुजन सर्वसामान्य प्रजा में धम्म संस्कृति का पुन: उत्थान करते थे ! बुद्ध अनुशासन के लिए धम्म सेवा करते थे ! यह धम्ममहामत्त और इत्थि अज्झख महामत्त धम्म के तीनों अंग “सीलसमाधिपञ्ञा” में परिपक्वता प्राप्त थे !ऐसे ही धम्म प्रचार प्रसार के प्रशिक्षण की आवश्यकता है !

नाकी किसी साक्यवंश ,कोलियवंश ,चकमा वंश और सातवाहन वंश ,नेपोलियन वंश की ! वंश ,वर्ण जाती का मिथ्या अभिमान ही कुल नासक होने का घोतक है यह बुद्ध वचन है !
( नाग वंश के राजा लोग अपनी पहचान के लिए चलन, शिक्के तथा झेंडा के उपर नाग के चिन्ह प्रचलित कर देते थे

विशेष सुचना:- वरिल सर्व माहीती विविध वर्तमानपत्रे, पुस्तके, आणि इतर मजकूर व बातम्या अशा माध्यमातून लोकमाहितीस्तव संपादित केलेली असून सदर माहिती जमा करीत आसताना या मध्ये तफावत अथवा मतभेद असण्याची शक्यता नाकारता येत नाही. आपण आपल्या सुचना / तक्रारी / माहिती देण्यासाठी कृपया संपर्क साधावा. rohidasshivajimalage3@gmail.com
Mobile No:- 9604939252

-®रोशिम.✍️

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